
सतीश शुक्ल 1955 में मथुरा में जन्मे, तत्पश्चात गृह-जनपद झाँसी तथा कानपुर, बनारस में पले-बढ़े l कानपुर यूनिवर्सिटी से विज्ञान में स्नातक और परास्नातक डिग्री तथा बी.एच.यू. वाराणसी से प्लान्ट पैथोलॉजी में शोध-कार्य का अनुभव प्राप्त किया...
My copy of The book arrived in the mail today. I’m barely 9 pages into the book and i already love this immensely...
#बाल-#गुरू'....ई-बुक...अब सफर में मोबाइल फ़ोन पर भी.…कहीं-भी...कैसे- भी...मज़ा ही मज़ा..बस पढ़ते जाओ, पढ़ते जाओ.!!!
प्रख्यात लेखिका सुश्री तनुजा उप्रेत ...
"बाल-गुरू में बेफ़िक्र - बचपन की बेबाक़-ब ...
प्रख्यात रंगकर्मी श्री अंजन जी (वागले ...
हाल में सतीश जी की बाल-गुरु पढ़ी. यह पुस्तक www.navrasindia.com से उपलब्ध हुई. बाल-गुरु कई मायनों में एक अनोखी गाथा है. । यह उपन्यास उस जीवन के अनुभवों का पिटारा है जो हम सब जीते ही हैं. हमारे बाल्यकाल में ही हमारे भविष्य की नींव पड़ जाती है. जितनी गहरी नींव उतना ही बड़ा वटवृक्ष। हमारे जीवन पर माता-पिता का अमिट छाप तो पड़ता ही है लेकिन और भी कई लोगों का इस पर प्रभाव होता है। मित्रों का प्रभाव तो सर्वोपरि होता है। सही कहूँ तो सामाजिक जीवन की सर्वप्रथम सीख दोस्तों से ही मिलती है।आप जीवन की बारीकियां सीखते हैं और यही आपको जीवन में कुछ बनाता है। यह आप पर निर्भर है कि इन सीखों का उपयोग जीवन में किस प्रकार करते हैं...! #बाल-#गुरु के अध्यायों को पढ़ते पढ़ते उन चेहरों को याद करते हैं जो बाल्यकाल में संग थे और उनके व्यवहार-विचार जीवन के अंग बन गए। वो सारे लोग एक-एक कर के सजीव हो उठते हैं। आज आप जो भी हैं उसमें उनकी बड़ी भूमिका है। इतने अच्छे उपन्यास के लिए श्री सतीश शुक्ला जी बहुत - बहुत बधाई के पात्र हैं.